हाई कोर्ट ने यह फैसला दिया है कि शादी के बाद पति या पत्नी अगर किसी और इंसान से गलत तरीके से चैटिंग करती हैं, तो उस व्यक्ति का दूसरे व्यक्ति के खिलाफ यह मानसिक रूप से मानसिक अत्याचार माना जायगा। ऐसा करने पर हिंदू विवाह के अधिनियम, 1955 की धारा 13 के तहत तलाक का कारण बन सकती है।
कोर्ट द्वारा की गई अहम बातें:
शादी में एक दूसरे का सम्मान करना ज़रूरी है – पति या पत्नी को अपने दोस्तों से बातचीत करने की आज़ादी होनी चाहिए, और यह भी बताया गया है कि ये बातचीत मर्यादा में होनी चाहिए।
ओर दोनों अपने जीवनसाथी की भावनाओं का ध्यान रखना ज़रूरी है – अगर पति या पत्नी को आपत्ति न हो और अगर फिर भी किसी से गलत तरह की बातें की जाएँ, तो इसे मानसिक रूप से क्रूरता कहा जाएगा। या अगर फिर भी किसी से गलत तरीके से बात की जाए, तो यह दिमागी क्रूरता मानी जाएगी।
सबूत – पत्नी के पिता, जो बड़े वकील थे, उन्होंने माना कि उनकी बेटी ने उसके किसी पुरुष दोस्तों से गलत चैट की है, जिससे कि उसके परिवार को उसकी वजह से बहुत शर्मिंदगी उठानी पड़ी।
कोई विरोध नहीं किया गया – पत्नी ने यह कहा कि पति ने उसके खिलाफ झूठे सबूत बनाए हैं, जबकि उसने पुलिस में कोई शिकायत नहीं की। इसलिए कोर्ट ने पति की सारी बातों को सही माना।
फैसला पेंडिंग में रखा गया – हाईकोर्ट ने फैमिली कोर्ट के तलाक के फैसले को सही ठहराया और पत्नी की अपील को रद्द कर दिया।
फैसले का असर
शादी में भरोसा और इज्जत तोड़ना uमानसिक क्रूरता माना जा सकता है।
ऐसे में डिजिटल तरीके (जैसे चैटिंग) से किया गया गलत व्यवहार भी तलाक का कारण बन सकता है।
पति-पत्नी को आज़ादी है, लेकिन शादी की गरिमा और साथी की भावनाओं का सम्मान जरूरी है।
कोर्ट द्वारा दी गई राय:
कोर्ट को लगता है कि कोर्ट द्वारा लिया गया फैसला ठीक है। शादी में सबसे जरूरी है विश्वास और इज्जत। अगर कोई बार-बार अपने साथी की भावनाओं को ठेस पहुंचाता है तो रिश्ता लंबे समय तक चल नहीं सकता। आज के समय में डिजिटल चैटिंग का असर भी असली दुनिया जितना ही है, इसलिए इसे हल्के में तो बिल्कुल भी नहीं लिया जाना चाहिए।