बॉम्बे हाई कोर्ट ने गैर-FASTag वाहनों पर दोगुना टोल लगाने के खिलाफ दायर जनहित याचिका को किया रद्द || high court judgement 2025|| Hight Court

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बॉम्बे हाई कोर्ट ने बिना 'FASTag' दोहरा टोल शुल्क वसूली को चुनौती देने वाली जनहित याचिका खारिज की

बॉम्बे हाई कोर्ट ने हाल ही में एक जनहित याचिका (PIL) को रद्द किया है, जिसमें NHAI के उन नियमो को चुनौती दी गई थी, जो कि बिना FASTag वाले वाहनों से डबल टोल लेने की अनुमति देता है।

मुख्य न्यायाधीश आलोक अर्दे और न्यायमूर्ति भारती डांगरे की खंडपीठ ने कहा कि FASTag सरकार की नीति के तहत शुरू किया गया था।, जिसका उद्देश्य सड़क यात्रा को अधिक सरल और प्रभावी बनाना है। अदालत ने कहा,

"आज के समय में, खासकर मुंबई और पुणे जैसे शहरों में, शायद ही कोई ऐसा व्यक्ति होगा जो मोबाइल फोन का इस्तेमाल न करता हो। जब लोग मोबाइल फोन का उपयोग करते हैं, तो वे उसकी रिचार्ज करना भी आता है। FASTag का उपयोग करना कोई कठिन काम नहीं है और इसे ऑफलाइन भी शुरू किया जा सकता है। ऐसे में इस नीति में हस्तक्षेप करने का कोई कारण नहीं है।"


याचिकाकर्ता की मांग और दलीलें


याचिकाकर्ता ने 12/02/2021 और 14/02/2021 को जारी किए गए NHAI के सर्कुलर को रद्द करने की मांग की थी, जिसमें बिना FASTag वाले वाहनों से दोगुना टोल शुल्क वसूलने का प्रावधान किया गया था। उन्होंने कम से कम एक लेन को हाइब्रिड लेन रखने की भी मांग की थी, जिससे वाहन चालक नकद या अन्य माध्य से टोल शुल्क का भुगतान कर सकें।


याचिकाकर्ता का तर्क था कि कुछ लोग अभी भी डिजिटल तकनीक से अवगत नहीं हैं, और ऐसे लोगों के वाहनों की आने जाने में पाबंदी लगाना और उनसे दोगुना शुल्क लेना मनमानी है। उन्होंने यह भी दावा किया कि FASTag न होने पर अधिक शुल्क लगाना, अनुच्छेद 19(1)(d) के तहत मिले 'स्वतंत्र रूप से आने-जाने' के अधिकार का उल्लंघन करना है।


कोर्ट द्वारा लिया गया निर्णय


कोर्ट ने कहा कि FASTag को 2014 में लाया गया था और इसे पूरे देश में स्टेप-बाय-स्टेप तरीके से लागू किया गया। इसे अनिवार्य करने से पहले जनता को इसे अपनाने के लिए पर्याप्त समय दिया गया था। साथ ही, सरकार ने 2016 से 2020 तक FASTag उपयोगता को 10% से 2.5% तक का कैशबैक देकर इसे अपनाने के लिए प्रोत्साहित भी किया।

कोर्ट ने याचिकाकर्ता के इस तर्क को अस्वीकार कर दिया कि FASTag न होने पर लिया गया दोगुना रुपए 'दंड' (Penalty) है। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि ये दंड नहीं बल्कि NAHI द्वारा ली जाने वाली एक तरह की "फीस" है, जो राष्ट्रीय राजमार्ग शुल्क नियम, 2008 के नियम 6(3) के तहत वैध है।


संविधान के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन नहीं है


कोर्ट ने यह भी कहा कि FASTag को अनिवार्य बनाना किसी भी नागरिक के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन नहीं करता। यह धारणा गलत है कि बिना FASTag वाले वाहनों को टोल प्लाजा पार करने की अनुमति नहीं दी जाएगी। 14/02/2021 के सर्कुलर के अनुसार, ऐसे वाहन टोल प्लाजा पर ही POS (प्वाइंट ऑफ सेल) से FASTag प्राप्त कर सकते हैं, इसे चिपका सकते हैं और इसका उपयोग करना शुरू कर सकते हैं।


अदालत ने कहा, "हम यह नहीं मानते कि वाहन के आने जाने पर कोई रोक है, जैसा कि याचिकाकर्ता का दावा है। बल्कि, नकद भुगतान के स्थान पर FASTag के उपयोग को बढ़ावा देना के लिए यह आवश्यक है कि वाहन दोगुना शुल्क अदा करे।"


FASTag को अपनाने की आवश्यकता


अदालत ने यह भी कहा कि FASTag का उपयोग बहुत आसान है और इसे रिचार्ज करने के लिए UPI, ऑनलाइन बैंकिंग और अन्य एप्लिकेशन सहित बहुत से विकल्प हैं।


अदालत ने टिप्पणी की,

"यह कल्पना करना मुश्किल है कि भारत में जनता FASTag जैसी सरल तकनीक का उपयोग करने में असमर्थ होगी।"


निष्कर्ष


अदालत ने यह स्पष्ट किया कि नकद भुगतान को प्रतिबंधित करना कोई मनमानी वाला निर्णय नहीं है और न ही यह संविधान के तहत दिए गए मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता है।

इसके आधार पर, कोर्ट ने इस याचिका रद्द कर दिया।


मामले का वितरण:


मामला: अर्जुन राजू खानापुरे बनाम भारत संघ एवं अन्य (जनहित याचिका संख्या 75/2021)

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